End of the Earth: पिछले 50 करोड़ वर्षों में हमारे ग्रह ने कुल पांच बार जीवों की विशाल महाविलुप्ति देखी है। इनमें से पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना में पृथ्वी की तत्कालीन करीब 90 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं।
इनमें से अधिकांश घटनाएं एक ‘सुपरकॉन्टिनेंट’ के निर्माण के साथ मेल खाती हैं, जहां पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेटें धीरे-धीरे एक साथ आती हैं और संयोजित होती हैं।
फिर बनेगा सुपरकॉन्टिनेंट ‘पैंजिया अल्टिमा’
वैज्ञानिकों का पूर्वानुमान है कि पृथ्वी के महाद्वीप अगले 25 करोड़ साल में फिर से एक साथ मिलकर ‘सुपरकॉन्टिनेंट’ बनाएंगे जिसे ‘पैंजिया अल्टिमा’ नाम दिया गया है। इसका संकेंद्रण विषुवत रेखा के पास होगा और यह गर्म महाद्वीप होगा।
ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स और अमेरिका स्थित नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के कई सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक ‘पैंजिया अल्टिमा’ की परिस्थितियां अधिकतर स्तनधारियों के जीवित रहने के लिए विपरीत होंगी।
सूर्य का विकिरण बनेगा विनाशकारी
इस ‘सुपरकॉन्टिनेंट’ के बनने से अधिक ज्वालामुखी गतिविधि होगी, और बूढ़ा होता सूर्य पृथ्वी पर अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगा।
इसके परिणामस्वरूप भूमि की सतह का तापमान अत्यधिक हो जाएगा, जिससे महाद्वीप का अधिकांश भाग एक विशाल, गर्म रेगिस्तान में बदल जाएगा, जो विज्ञान-कल्पना महाकाव्य ड्यून के रेगिस्तानी ग्रह ‘अराकिस’ की याद दिलाता है।
औसत तापमान कर जाएगा 50 डिग्री सेल्सियस को पार?
वर्ष के सबसे गर्म महीनों के दौरान, अधिकांश महाद्वीप में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है, कई क्षेत्रों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर सकता है। यह बहुत गर्म होने वाला है मौजूदा समय में स्तनपायी मोटे तौर पर धरती के दो तिहाई हिस्से पर निवास कर सकते हैं।
हालांकि, अन्य कारकों में बदलाव किए बिना महाद्वीपों को पुनर्व्यवस्थित करने के बाद, हमारे मॉडलिंग से पता चला कि सतह का औसत वार्षिक तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत तापमान (लगभग 5 डिग्री सेल्सियस) से बढ़कर लगभग 24 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा।
घट जाएगा पृथ्वी पर आवास का क्षेत्र
इसकी वजह से पृथ्वी पर निवास करने वाले इलाके घटकर महज 54 प्रतिशत रह जाएंगे। इसका प्राथमिक कारण ‘पैंजिया अल्टिमा’ पर तापमान में वृद्धि है जिसका संकेंद्रण भूमध्य रेखा के पास होगा।
हालांकि, अन्य कारक जैसे भूसतह की ऊंचाई में अंतर (अधिक ऊंचे वाले स्थान अपेक्षाकृत ठंडे होते हैं), बर्फ से ढके इलाकों की अनुपस्थिति और पादप के विस्तार में अंतर भी तापमान की वृद्धि में योगदान देंगे।
ढाई गुना बढ़ जाएगी सूर्य की चमक
हमारे आकलन से संकेत मिलता है कि जब ‘पैंजिया अल्टिमा’ का पूर्ण रूप से निर्माण हो जाएगा तब सूर्य की चमक आज के अपेक्षा 2.5 प्रतिशत अधिक होगी।
सूर्य की प्रचंडता में वृद्धि से पृथ्वी पर सतह के तापमान में और वृद्धि होगी और यह करीब 25 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाएगा एवं इसकी वजह से धरती का केवल एक चौथाई हिस्सा ही निवास करने योग्य होगा।
कितना होगा कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर?
‘पैंजिया अल्टिमा’ के निर्माण के दौरान वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड (सीओ2) के स्तर को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। हमारे मॉडल से संकेत मिलता है कि सीओ2 का संकेंद्रण वायुमंडल में बढ़कर 613 पार्टस पर मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच जाएगा जो इस समय 420 पीपीएम है।
सीओ2 में इस वृद्धि की वजह से सतह का औसत तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस होने की आशंका है जिससे पृथ्वी में निवास करने योग्य स्थान घटकर महज आठ से 16 प्रतिशत रह जाएगा।
फिर से आएगा डायनासोर युग?
अगर हम दैनिक अधिकतम तापमान और कठोर मौसमी घटनाओं पर विचार करें तो कुछ इलाकों में तामपान 60 डिग्री सेल्सियस के ऊपर जा सकता है।
विपरीत परिस्थितियां डायनासोर के समय से स्तनपायी की सफलता की सबसे अहम कुंजी उनकी परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता है। उनके पास बाहरी पर्यावरण से इतर अपने शरीर का तापमान विनियमित करने की क्षमता है।
‘हीटस्ट्रोक’ से होगा मस्तिष्क पर ऐसा असर…
उदाहरण के लिए इनसान गर्मियों में अपने शरीर के तापमान को पसीने से ठंडा कर लेता है जबकि कुत्ते तेज सांस से इस तापमान के असर को कम कर देते हैं। वहीं, हाथी अपने बड़े-बड़े कान से गर्मी को कम करते हैं।
हालांकि, जब आसपास की हवा त्वचा के तापमान से अधिक गर्म होती है, तो शरीर गर्मी को दूर करने के लिए संघर्ष करता है, जिससे अधिक गर्मी होती है। ऐसी स्थितियों में लंबे समय तक रहने से ‘हीटस्ट्रोक’ हो सकता है, जिससे मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों में सूजन हो सकती है।
कितनी खतरनाक होगी पृथ्वी की स्थिति?
स्तनपायी केवल एक खास तापमान को ही सह सकते हैं। जब वायु का तापमान (ड्राई बल्ब टेम्प्रेचर)40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है और जब आद्रता के बीच हवा का तापमान (वेट बल्ब टेम्प्रेचर)35 डिग्री को पार करता है तब स्थिति खतरनाक हो जाती है।
हाल के अनुसंधान से यह भी पता चलता है कि मनुष्यों और अधिकांश स्तनधारियों के लिए ‘वेट-बल्ब तापमान’ सीमा 31.5 डिग्री सेल्सियस से कम हो सकती है।
क्या ऐसे जीवों की मृत्यु?
केवल छह घंटे तक ऐसे तापमान के संपर्क में रहने से, यहां तक कि जब छाया में हों और पंखे के साथ हों, तो मृत्यु हो सकती है।
कुछ स्तनधारियों में तापमान सहने की क्षमता और भी कम होती हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिकी मूस सामान्य परिस्थितियों में 17 डिग्री सेल्सियस या हवा चलने पर 24 डिग्री सेल्सियस का तापमान सह सकता है।
क्या स्तनपायियों के लिए मौका है?
स्तनधारियों ने अतीत में गर्म मौसम को सहा है, जैसे लगभग पांच करोड़ वर्ष पहले पैलियोसीन-इओसीन थर्मल मैक्सिमम (पीईटीएम) के काल में जब पृथ्वी के सतह का तापमान लगभग पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ गया था।
लेकिन पैंजिया अल्टिमा के गठन में कुछ महत्वपूर्ण अंतरों पर विचार करना आवश्यक है। पहला पीईटीएम की अवधि अपेक्षाकृत छोटी थी यह परिस्थिति करीब एक लाख साल तक रही जिसके बाद तापमान में तेजी से कमी आई और जीवन की परिस्थितियां अधिक अनुकूल हो गई।
अधिकांश हिस्से होंगे रेगिस्तान
इसके उलट ‘पैंजिया अल्टिमा’ के बारे में आकलन है कि उसपर तापमान की परिस्थिति एक करोड़ साल या इससे भी अधिक होगी।
दूसरी पीईटीएम के तौर पर महाद्वीपों की स्थिति ऐसी थी जिससे स्तनधारी गर्मी से बचने के लिए आसानी से अपेक्षाकृत ठंडे ध्रुवों की ओर पलायन कर सकते थे। पैंजिया अल्टिमा में ग्रह का अधिकतर भूभाग विषुवत रेखा के पास होगा और ‘सुपरकॉन्टिनेंट’ का विशाल हिस्सा रेगिस्तान होगा।
विशाल रेगिस्तान को पार करना होगा मुश्किल
इसकी वजह से स्तनधारियों के लिए रेगिस्तान को पार कर ठंडे इलाकों तक पहुंचना मुश्किल होगा। टेक्टॉनिक प्लेटों ने हमारे ग्रह पर जीवन के क्रमिक विकास में अहम भूमिका निभाई है और यह आगे भी महत्वपूर्ण होगी।
यदि स्तनधारी विलुप्त हो जाए तो किस प्रकार के जीव इस ग्रह पर प्रभावी होंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं है।
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